संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन के पांच साल पर गरज उठे किसान, त्रिपुरा में मचा राजनीतिक तूफान

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संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन के पांच साल पर गरज उठे किसान, त्रिपुरा में मचा राजनीतिक तूफान

संयुक्त किसान मोर्चा: किसान आंदोलन के पांच साल पूरे होने पर त्रिपुरा में संयुक्त किसान मोर्चा ने विशाल रैलियों और सभाओं का आयोजन किया। इस लेख में हम बताते हैं कि कैसे इस मौके पर राज्यभर में प्रदर्शन हुए, बीजेपी पर हिंसा के आरोप लगे, कई नेताओं को गंभीर चोटें आईं, और क्यों किसान संगठन ने मोदी सरकार पर वादाखिलाफी और मजदूरों पर अत्याचार के गंभीर आरोप लगाए। त्रिपुरा से राष्ट्रपति तक भेजे जाने वाले स्मारक पत्र तक, इस रिपोर्ट में आपको हर अहम जानकारी मिलेगी।

त्रिपुरा में रैलियों से गूंजा किसान आंदोलन का पांचवां वर्ष

त्रिपुरा में किसान आंदोलन के पांचवें वर्ष पर संयुक्त किसान मोर्चा ने राज्यव्यापी प्रदर्शन आयोजित किए। बुधवार को अगरतला के ओरिएंट चौमोहनी में हुई जनसभा में अह्वायक पवित्र कर ने कहा कि मोर्चा को हमला कर रोका नहीं जा सकता। उनकी आवाज में गुस्सा, दर्द और संकल्प साफ झलक रहा था।

उन्होंने आरोप लगाया कि धर्मनगर में संयुक्त किसान मोर्चा की रैली पर बीजेपी समर्थित असामाजिक तत्वों ने जानलेवा हमला किया। इस हिंसा में सीआईटीयू के राज्य उपाध्यक्ष और पूर्व विधायक अमिताभ दत्ता घायल हो गए। वहीं अखिल भारतीय किसान सभा के सदस्य रतन राय को गंभीर चोट लगने के बाद उन्हें अगरतला रेफर किया गया।

किसानों पर हमले के आरोप, बढ़ी राजनीतिक गर्माहट

जनसभा में पवित्र कर ने कहा कि बीजेपी किसानों और मजदूरों की आवाज दबाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार ने तीन कृषि कानून वापस लेने का लिखित वादा किया था, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने की बात कही थी, लेकिन आज तक कोई वादा पूरा नहीं किया गया।

उनका कहना था कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा देने के लिए सी2 प्लस पचास प्रतिशत फॉर्मूले को लागू करने की बात भी ठंडी बस्ते में डाल दी गई है। किसान नेता ने भावुक होकर कहा कि यह किसानों के साथ विश्वासघात है।

श्रमिकों के अधिकारों पर भी हमले के आरोप

सभा में यह भी आरोप लगाया गया कि 33 पुराने श्रम कानूनों को हटाकर सरकार ने चार नए लेबर कोड लागू किए, जिससे मजदूरों के अधिकार कमजोर हो गए। पवित्र कर ने कहा कि आठ घंटे की जगह बारह घंटे काम को अनिवार्य किया गया, जिससे मजदूरों पर भारी बोझ बढ़ गया है।

राज्य किसान सभा के अध्यक्ष अघोर देवबर्मा ने कहा कि ऐसा लगता है मानो केंद्र सरकार ने किसानों के खिलाफ जिहाद घोषित कर दिया हो। उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा सरकार की हर आक्रामक नीति का जवाब देगा और यह आंदोलन और मजबूत होकर लौटेगा।

राष्ट्रपति को भेजा जाने वाला स्मारक पत्र

संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से बिजली बिल 2020 को रद्द करने, मनरेगा मजदूरी को सात सौ रुपये करने और दो सौ दिन काम की मांग समेत अन्य मुद्दों पर राष्ट्रपति को एक विस्तृत ज्ञापन भेजा जाएगा। त्रिपुरा में भी पश्चिम जिला के जिलाशासक को इस स्मारक पत्र की प्रति सौंपी गई।

एकजुट होने की अपील, आंदोलन को मिला नया स्वरूप

सभा में मौजूद नेताओं ने कहा कि यह संघर्ष सिर्फ किसानों का नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति का है जो अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना चाहता है। उन्होंने आम जनता से भी इस आंदोलन में शामिल होने की अपील की।

किसान आंदोलन के पांच साल पर त्रिपुरा की धरती एक बार फिर किसान अस्मिता और अधिकारों की लड़ाई का केंद्र बन गई। नेताओं के घायल होने, बढ़ते तनाव और किसानों के संकल्प ने साफ कर दिया कि यह आंदोलन अभी खत्म नहीं होने वाला।

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