उज्जैन में भूमि पूलिंग से सरकार का यू-टर्न: किसान आंदोलन ने कैसे बदल दी नीति

[post_dates]

उज्जैन में भूमि पूलिंग से सरकार का यू-टर्न: किसान आंदोलन ने कैसे बदल दी नीति

मध्य प्रदेश की राजनीति और ग्रामीण समाज के रिश्ते में एक बार फिर जमीन सबसे बड़ा मुद्दा बनकर सामने आई है। उज्जैन में प्रस्तावित भूमि पूलिंग योजना को राज्य सरकार द्वारा पूरी तरह वापस लेना केवल एक प्रशासनिक फैसला नहीं है, बल्कि यह किसानों की ताकत, राजनीतिक दबाव और आने वाले समय की नीतियों का संकेत भी देता है।

क्यों अहम है उज्जैन की भूमि पूलिंग से सरकार का यू-टर्न

उज्जैन में 2028 के सिंहस्थ कुंभ को लेकर सरकार बड़े स्तर पर स्थायी धार्मिक नगरी और अधोसंरचना विकसित करने की योजना बना रही थी। इसके लिए उज्जैन विकास प्राधिकरण की चार टाउन डेवलपमेंट योजनाओं के तहत आसपास की कृषि भूमि को शामिल किया गया था। सरकार का तर्क था कि इससे भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बेहतर व्यवस्था खड़ी की जा सकेगी।

लेकिन किसानों के लिए यह योजना विकास से ज्यादा अस्तित्व का सवाल बन गई। जिन खेतों पर उनकी आजीविका निर्भर है, उन्हीं पर स्थायी निर्माण का डर किसानों को सड़कों पर ले आया। खास बात यह रही कि विरोध केवल परंपरागत किसान संगठनों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आरएसएस से जुड़े भारतीय किसान संघ ने भी इसे खुलकर चुनौती दी।

किसान विरोध ने क्यों बदला सरकार का रुख

भारतीय किसान संघ ने जब 26 दिसंबर से अनिश्चितकालीन धरने का ऐलान किया और 18 जिलों से किसानों के उज्जैन पहुंचने की तैयारी शुरू हुई, तब यह साफ हो गया कि मामला केवल स्थानीय असंतोष का नहीं रहा। यह राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा बन चुका था।

सरकार ने पहले 17 नवंबर को संशोधित आदेश जारी कर यह कहने की कोशिश की कि जमीन केवल सड़क, नाली और जरूरी ढांचे के लिए ली जाएगी, स्थायी निर्माण नहीं होगा। लेकिन किसानों ने इसे भरोसे के साथ नहीं लिया। उनका तर्क था कि एक बार जमीन का उपयोग बदल गया, तो खेती कभी वापस नहीं आएगी।

राजनीतिक संकेत और अंदरूनी दबाव

इस पूरे घटनाक्रम में एक अहम पहलू यह रहा कि सत्तारूढ़ दल के स्थानीय विधायकों ने भी इस योजना पर आपत्ति जताई। यह संकेत था कि जमीन से जुड़ा असंतोष चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। देर रात जारी आदेश में सरकार ने संशोधन को “पूरी तरह निरस्त” कर यह स्वीकार किया कि जनहित में पीछे हटना ही बेहतर विकल्प है।

आगे क्या? सिंहस्थ की तैयारी और नई चुनौती

भूमि पूलिंग योजना वापस लेने के बाद सरकार के सामने अब बड़ा सवाल खड़ा है—2028 सिंहस्थ की तैयारियां कैसे होंगी? अस्थायी ढांचे, वैकल्पिक भूमि या मौजूदा शहरी सीमाओं के भीतर विकास जैसे विकल्पों पर दोबारा विचार करना होगा।

यह मामला भविष्य के लिए एक बड़ा संदेश भी देता है कि धार्मिक और शहरी विकास के नाम पर कृषि भूमि को लेकर किसी भी तरह का फैसला किसानों की सहमति के बिना टिकाऊ नहीं होगा। उज्जैन की घटना बताती है कि संगठित किसान आवाज आज भी नीतियों की दिशा बदलने की क्षमता रखती है, और आने वाले वर्षों में जमीन से जुड़े फैसलों में सरकारों को कहीं अधिक संवेदनशील और पारदर्शी होना पड़ेगा।

Join WhatsApp

Join Now

Leave a Comment