1.34 लाख किसानों की उम्मीदें अधर में! दस्तावेज़ न मिलने से थमी फार्मर रजिस्ट्री

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1.34 लाख किसानों की उम्मीदें अधर में! दस्तावेज़ न मिलने से थमी फार्मर रजिस्ट्री

यूपी के उन किसानों की स्थिति, दस्तावेज़ मिसमैच की समस्या, फार्मर रजिस्ट्री की मौजूदा स्थिति, किसानों की परेशानियां और सरकारी विभाग के प्रयासों को विस्तार से बताया गया है। मऊ जिले में 1.34 लाख से अधिक किसानों की फार्मर रजिस्ट्री आधार कार्ड और खतौनी के नाम न मिलने की वजह से अधर में अटकी हुई है। इससे हजारों किसान सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित होने की कगार पर पहुंच गए हैं, जिससे पूरे जिले में चिंता और असमंजस का माहौल पैदा हो गया है।

आधार–खतौनी मिसमैच से अटका पंजीकरण, किसान परेशान

जिले में कुल 2,85,051 किसानों की रजिस्ट्री की जानी है, जिसमें से 1,50,342 किसानों का कार्य पूरा हो चुका है। हालांकि 1,34,709 किसानों की रजिस्ट्री इसलिए नहीं हो पा रही है क्योंकि उनके आधार कार्ड और खतौनी में नाम अलग-अलग दर्ज है। कई किसानों के नाम खतौनी के मूल कॉलम में दर्ज ही नहीं हैं, जिससे पंजीकरण प्रक्रिया बाधित हो रही है। इससे किसान रोजाना सुबह से शाम तक तहसील के चक्कर लगाने को मजबूर हैं, लेकिन समाधान न मिलने से निराश होकर लौट रहे हैं।

दूर-दराज के किसानों की बढ़ी मुश्किलें, विभाग भी दबाव में

गांवों से आने वाले किसानों को दस्तावेज़ सुधार के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ रही है, और कई बार पूरे दिन लगने के बाद भी समस्या का हल नहीं मिल पाता। शासन ने फार्मर रजिस्ट्री को अनिवार्य कर दिया है, जिससे योजनाओं का लाभ अब केवल उन्हीं किसानों को मिलेगा जिनकी रजिस्ट्री पूरी हो चुकी है। विभाग के अनुसार नाम मिसमैच ने पूरी प्रक्रिया में बड़ा अवरोध खड़ा कर दिया है, जिससे प्रशासन की सभी तैयारियों पर भी असर पड़ा है।

कृषि विभाग द्वारा कैंप, लेकिन समाधान अभी दूर

कृषि विभाग भी कैंप लगाकर रजिस्ट्री करवाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन बड़ी संख्या में गलत दस्तावेज़ों के कारण प्रक्रिया बेहद धीमी हो गई है। अधिकारियों ने किसानों से जल्द से जल्द दस्तावेज़ में सुधार करवाने और रजिस्ट्री पूर्ण कराने की अपील की है, ताकि वे प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि जैसे लाभों से वंचित न हों। विभाग का कहना है कि सभी किसानों की रजिस्ट्री अनिवार्य है और समस्याओं के समाधान की दिशा में प्रयास लगातार जारी हैं।

यह स्थिति न सिर्फ किसानों को परेशान कर रही है, बल्कि जिले के प्रशासनिक ढांचे पर भी अतिरिक्त दबाव बना रही है। किसानों की उम्मीदें अब इस बात पर टिकी हैं कि उनके दस्तावेज़ जल्द सही हों और सरकारी सहायता का रास्ता फिर से आसान बने।

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